Locked in syndrome: जाने क्या है सुडोकोमा, कारण, लक्षण, इलाज़, परिक्षण, प्रकार।
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परिचय- Locked in syndrome kya hai in hindi
स्वास्थ्य संबंधित बीमारियों की इस दुनिया में कई सारे रोग और ऐसी स्थितियां होती है जिनके बारे में काफी कम लोग जानते हैं , उनमे से एक है Locked in syndrome बीमारी, तो चलिए Locked in syndrome kya hai in hindi के बारे में हम आपको बताते हैं।
Locked in syndrome एक प्रकार की बेहद गंभीर न्यूरोलॉजिकल स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति पूरी तरह से सचेत और गंभीर स्थिति में रहता है। डॉक्टर के अनुसार यह समस्या व्यक्ति के brain system में होने वाले नुकसान से संबंधित है। Locked in syndrome kya hai in hindi के बारे में संपूर्ण जानकारी जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें, तो चलिए अब हम जानते हैं।
Locked in syndrome kya hai in hindi
लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) एक तरह का दुर्लभ और बेहद गंभीर न्यूरोलॉजिकल विकार होता है जिसमें व्यक्ति के voluntary muscles में paralysis हो जाता है, सिवाय उन मांसपेशियों के, जो आपकी vertical eye (ऊपर और नीचे) के activity को control करती हैं। ऐसी ही दुर्लभ और जटिल स्थिति को हम Locked in syndrome कहते है।
Locked in syndrome kya hai in hindi के बारे में अगर बहुत ही आसान और स्पष्ट परिभाषा में बताया जाए तो locked-in syndrome वाले लोग ज्यादातर सचेत या सतर्क ही रहते हैं और उनकी cognitive abilities सामान्य लोगों की तरह सोचने और तर्क करने की होती है लेकिन, चेहरे के भाव, देखने, बोलने या हिलने डुलने में बिल्कुल असमर्थ होते हैं।
इस बीमारी से पीड़ित लोग आमतौर अपनी आंखों की गति करने, पलक झपकाने के माध्यम से आसानी से सुन सकते हैं या बातचीत कर सकते हैं। ऐसी बीमारी वाले लोग बातचीत करने के लिए टेक्नोलॉजी का भी उपयोग करते हैं।
लॉक्ड-इन सिंड्रोम (pseudocoma) होने के कारण के बारे में बात की जाए तो Locked in syndrome वाले व्यक्ति के brain system के एक important part में नुकसान के कारण ये बीमारी होतो है। दिमाग के जिस हिस्से में नुकसान पहुंचता है उस हिस्से को पोन्स (Pons) के नाम से जाना जाता है।
What are the types of locked in syndrome in hindi
Locked in syndrome kya hai in hindi को जानने के बाद एक और महत्वपूर्ण सवाल सामने आता है, कि locked-in syndrome कितने प्रकार के होते हैं। मेडिकल साइंस के अनुसार ये एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति होती है जिसमें मरीज का दिमाग और व्यक्ति के सोचने की क्षमता सामान्य होती है लेकिन व्यक्ति के शरीर की मांसपेशियां हिलना बंद कर देती है। जिस कारण से मरीज बोल नहीं पाते है और ना ही अपने हाथ और पैर हिला पाते है।
ऐसे में What are the types of locked in syndrome in hindi को समझना बहुत जरूरी हो जाता है। मुख्य रूप से locked-in syndrome तीन प्रकार के होते हैं।
- Classical Locked in Syndrome – व्यक्ति पूरी तरह से लकवा ग्रस्त हो सकता है अर्थात इस locked-in syndrome में आप सुन सकते हैं लेकिन पूरी तरह से गतिहीनता होती है फिर भी आप अपनी आंखों को ऊपर नीचे घुमाकर देख सकते हैं। पलक झपका सकते हैं अर्थात आप सामान्य कॉग्निटिव क्षमताओ को बनाए रख सकते हैं।
- Incomplete Locked in Syndrome – के प्रकार में व्यक्ति में हल्की-फुल्की गतिविधि बनी रहती है, जैसे आपके हाथ और पैर का हल्का मूवमेंट होता रहता है। ये Locked in syndrome क्लासिकल प्रकार की तरह ही होता है लेकिन इसमें मूवमेंट होता है।
- Total immobility Locked in Syndrome – पूरा शरीर पैरालिसिस हो जाता है और आंखों की गति में भी कमी आ जाती है। लेकिन कॉग्निटिव क्षमताएं बिल्कुल सामान्य ही रहती हैं। डॉक्टर इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम नाम के एक परीक्षण के जरिए मस्तिष्क की तरंगों को मापता है, डॉक्टर ईईजी के द्वारा कॉर्टिकल फ़ंक्शन की जांच करके आपको यह बता सकते हैं कि व्यक्ति में अभी भी संज्ञानात्मक कॉग्निटिव क्षमता बाकी है।
इस प्रकार Locked in syndrome kya hai in hindi की जानकारी को जानने के साथ-साथ इसके प्रकारों को समझना जरूरी है। क्योंकि Locked in Syndrome बीमारी की पहचान इसके प्रकारों की सही पहचान होने से ही संभव है।
locked in syndrome kise hota hai
Locked in syndrome kya hai in hindi को समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है, ये दुर्लभ गंभीर न्यूरोलॉजिकल स्थिति किसे हो सकती है। Locked in syndrome kise hota hai यह सवाल अक्सर उन सभी मरीजों के परिवार के लोगों के मन में आता है जो इस रोग से ग्रसित होते हैं। तो Locked-in Syndrome (LIS) एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति में हो सकती है।
हालांकि, यह अधिकतर 30 से 50 वर्ष की आयु के लोगों में ही देखने को मिलती है इसलिए यह उम्र काफी महत्वपूर्ण माने जाती है क्योंकि इस समय स्ट्रोक, ब्रेन हेमरेज या फिर न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा हो जाता है। तो चलिए हम जानते हैं किन व्यक्तियों को यह बीमारी हो सकती है।
- locked in syndrome बीमारी पुरुषों और महिलाओं दोनों को हो सकता है।
- कभी-कभी यह स्थिति बुजुर्गों में (60 वर्ष से ऊपर) में भी देखने को मिल जाती है, खासकर जब उन्हें हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ या हृदय रोग आदि बीमारी हो।
यह एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जो किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है इसलिए यह दुर्लभ मामलों में बच्चों को भी प्रभावित कर सकती है खास तौर पर जब उन्हें गंभीर संक्रमण जैसे मेनिन्जाइटिस, एन्सेफलाइटिस या सिर में चोट लगी हो।
How common is locked in syndrome in hindi
Locked in syndrome kya hai in hindi को अच्छी तरह समझने के बाद लोगों के द्वारा अक्सर पूछा जाता है कि Locked in syndrome बीमारी कितनी सामान्य है। How common is locked in syndrome in hindi यह सवाल इसलिए भी जानना जरूरी है क्योंकि सिंड्रोम की दुर्लभता के कारण इसे पहचानना और आंकड़ों को पता करना मुश्किल माना जाता है।
Locked in syndrome बीमारी कोई आम बीमारी नहीं होती है इसलिए इस बीमारी की आसानी से पहचान भी नहीं की जा सकती है जिससे इसके मरीज को ढूंढ पाना एक बहुत मुश्किल काम हो जाता है। इसलिए लॉक्ड इन सिंड्रोम के मरीजों की वास्तविक संख्या पता कर पाना बहुत मुश्किल है ।
locked in syndrome ke lakshan kya hain
Locked in syndrome kya hai in hindi एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल समस्या होती है जिसके बारे में विस्तृत जानकारी मैंने ऊपर बताई है, लेकिन locked in syndrome ke lakshan kya hain इसको जाने बिना आप इस बीमारी का पता नहीं लगा सकते हैं तो चलिए हम इसके लक्षण और कारण को जानते हैं।
लॉक्ड इन सिंड्रोम (pseudocoma) एक रेयर लेकिन सीरियस बीमारी होती है जिसे वोलंटरी मसल्स की complete पैरालिसिस जैसे symptoms के द्वारा पहचाना जा सकता है सिवाय eye मसल्स मूवमेंट होने के।
लॉक्ड इन सिंड्रोम के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं।
- पैरालिसिस- लॉक इन सिंड्रोम से ग्रस्त व्यक्ति को complete पैरालिसिस या नियर टोटल पैरालिसिस ऑफ़ वोलंटरी मसल्स हो जाता है जिससे वे हिलडुल नहीं सकते और बोल भी नहीं सकते है।
- ऑय मूवमेंट- भी इस बीमारी का लक्षण है इसमें व्यक्ति सिर्फ ऊपर और नीचे eye मूवमेंट कर पाते हैं।
- Consciousness होना- व्यक्ति पूरी तरह से conscious होता है और अपने आसपास हो रहे घटना को देखकर समझ लेता है, वह सोच सकता है,सुन सकता है लेकिन अपने भावनाओं को दिखा नही पाता है।
- सेंसरी फंक्शन- जैसे संवेदना और स्पर्श, दर्द और अन्य संवेदी उत्तेजनाओं को महसूस करने की क्षमता आम तौर इस बीमारी में बरकरार रहती है।
- कम्युनिकेशन : लोस ऑफ़ स्पीच और लिंब मूवमेंट्स के कारण व्यक्ति कम्यूनिकेट नहीं कर पाता।
- रेस्पिरेसन और औटोनोमिक फंक्शन- व्यक्ति की breathing , heart rate, blood pressure पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
locked in syndrome me dard hota hai kya
Locked in syndrome kya hai in hindi की जानकारी को समझने के बाद लोगों के मन में इस बीमारी संबंधित कई प्रकार के प्रश्न होते हैं जैसे locked in syndrome me dard hota hai kya तो चलिए हम आपको बताते हैं। अगर आपको Locked in syndrome बीमारी है तो आप शारीरिक दर्द महसूस कर भी सकते हैं और नहीं भी कर सकते है।
कहने का मतलब है कि यह depend करता है कि आपको किस प्रकार का लॉक इन सिंड्रोम है अगर आपको locked in syndrome का total immobility रूप की बीमारी है, तो आप अपने शरीर के complete paralysis के कारण शारीरिक दर्द बिल्कुल भी महसूस नहीं कर पाएंगे।
लेकिन यदि आपको locked in syndrome का incomplete रूप है, तो आप अपने शरीर के कुछ parts में शारीरिक दर्द और अन्य पीड़ा महसूस कर पाएंगे।
Locked in syndrome kaise hota hai
Locked in syndrome kya hai in hindi के बारे में जानकारी जानने के साथ-साथ Locked in syndrome kaise hota hai इसके बारे में जानना भी जरूरी हो जाता है। तो चलिए हम बताते है, लॉक्ड-इन सिंड्रोम (LiS) नामक बीमारी आपके मस्तिष्क तंत्र की विशिष्ट भाग पोन्स (brainstem) में चोट लगने या क्षतिग्रस्त होने के कारण होता है। जिस कारण मस्तिष्क में blood flow रुक जाता है और जिस वजह से न्यूरॉन प्रभावित होते हैं।
पोन्स तंत्रिका तंतुओं का एक घोड़े की नाल के आकार का द्रव्यमान होता है जो Medulla Oblongata (आपके मस्तिष्क के निचले हिस्से) को Cerebellum (आपके मस्तिष्क का एक हिस्सा जो लगभग सभी शारीरिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है) से जोड़ता है।
अगर इससे भी आसान भाषा में बताया जाए कि Locked in syndrome kaise hota hai तो लॉक्ड-इन सिंड्रोम (pseudocoma) नामक बीमारी आपके ब्रेनस्टेम के एक हिस्से पोन्स को नुकसान पहुंचाने के कारण होता है।
ब्रेनस्टेम एक महत्वपूर्ण region है जो आपके मस्तिष्क को आपकी रीढ़ की हड्डी से जोड़ता है जिससे breathing, heartbeat और basic motor control जैसे विभिन्न अनैच्छिक कार्य नियंत्रित होते है। लॉक-इन सिंड्रोम में पोन्स की क्षति उन pathways को बाधित करती है जो मस्तिष्क और शरीर के बाकी हिस्सों के बीच में सिग्नल को transmit करते हैं।
जिससे शरीर में पैरालिसिस होने का खतरा होता है और आपके पोन्स को नुकसान होने से आपके दिमाग के वे केंद्र भी प्रभावित होते हैं जो आपके चेहरे पर नियंत्रण और बोलने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं जो आपको आपके चेहरे का भाव बताने या बात करने से रोकते हैं। हालांकि आपके पोन्स को नुकसान पहुंचाने वाले कुछ अन्य कारण भी होते हैं जिससे Locked in syndrome नामक बीमारी का खतरा रहता है।
- स्ट्रोक- इन सिंड्रोम का सबसे आम कारण स्ट्रोक होता है, ये तब होता है जब मस्तिष्क के एक हिस्से में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों की कमी से मस्तिष्क तंत्र, विशेषकर पोंस को नुकसान हो जाता है।
- ब्रेनस्टेम ट्रामा : ब्रेनस्टेम पर गंभीर दर्दनाक चोटें, जैसे कि दुर्घटना होना,सिर के अन्य प्रकार के चोट लगने के परिणामस्वरूप आपको लॉक-इन सिंड्रोम बीमारी हो सकती है।
- ट्यूमर: कुछ ट्यूमर, विशेष रूप से मस्तिष्क तंत्र या आस-पास की structures को प्रभावित कर पोन्स को नुकसान का कारण बन सकते हैं जिससे लॉक-इन सिंड्रोम बीमारी हो सकती है।
- संक्रमण: मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले संक्रमण, जैसे ब्रेनस्टेम एन्सेफलाइटिस आदि इसके परिणामस्वरूप सूजन और चोट हो सकती है, जिससे संभावित रूप से लॉक-इन सिंड्रोम का खतरा हो सकता है।
- न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर : कुछ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसे एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS), कुछ प्रकार के मल्टीपल स्केलेरोसिस, या अन्य दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसी स्थिति होने पर भी पोंस को नुकसान हो सकता है।
locked in syndrome ka diagnosis kaise kare
Locked in syndrome kya hai in Hindi एक प्रकार की दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति पूरी तरह से होश में रहता है लेकिन व्यक्ति के शरीर के सभी मांसपेशियों पर उनका नियंत्रण नहीं रहता है। अब आपके मन में सवाल आता है locked in syndrome ka diagnosis kaise kare तो इसके लिए सबसे पहले डॉक्टर के द्वारा मरीज की clinical assessment, medical imaging और रोगी के medical history के बारे में सभी प्रकार की जानकारी के बारे में डिटेल जानना जरूरी होता है।
locked in syndrome ka diagnosis kaise kare इसको अच्छी तरह समझने के लिए हमारे द्वारा दिए जाने वाले इस स्टेप्स को पढ़े।
- न्यूरोलॉजिकल परीक्षा: रोगी के motor and sensory functions का आकलन करने के लिए एक न्यूरोलॉजिकल परीक्षा doctor के द्वारा आयोजित की जाती है। इसमें muscle strength, reflexes, and coordination का मूल्यांकन अच्छी तरह किया जाता है।
- चेतना का आकलन: इसके बाद चिकित्सा टीम रोगी की consciousness और awareness के स्तर का पूरी तरह से आकलन करती है, क्योंकि लॉक-इन सिंड्रोम वाले व्यक्ति आमतौर पर अपने पैरालिसिस के बावजूद पूरी तरह से सचेत स्थिति में रहते हैं।
- मस्तिष्क इमेजिंग: न्यूरोइमेजिंग अध्ययन, जैसे magnetic resonance imaging (MRI) या computed tomography (CT) scans के जरिए मस्तिष्क की जांच डॉक्टर के द्वारा किया जाता हैं। ये इमेजिंग अध्ययन किसी भी structural abnormalities या क्षति की पहचान करने में डॉक्टर की मदद करते हैं, विशेष रूप से brainstem में, जो लॉक-इन सिंड्रोम के diagnosis के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
- इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी): इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी), EEG मस्तिष्क में विद्युत गतिविधि को अच्छी तरह मापता है। यह सीधे तौर पर लॉक-इन सिंड्रोम का diagnose नहीं कर सकता है, लेकिन यह अन्य neurological conditions को आसानी से दूर करने और मस्तिष्क के सभी कार्य के बारे में जानकारी प्रदान करने में मदद करता है।
- कम्युनिकेशन मूल्यांकन: चूंकि लॉक-इन सिंड्रोम वाले व्यक्ति eye movement पर नियंत्रण बनाए रख सकते हैं। इसलिए आंखों को घूरने, पलक झपकाने या अन्य गतिविधियों से जुड़े संचार तरीकों की गंभीर जांच करके कम्युनिकेशन मूवमेंट जांचा जाता है। इसमें विशेष कम्युनिकेशन उपकरण या फिर तकनीक का इस्तेमाल होता हैं।
- चिकित्सा इतिहास: लॉक-इन सिंड्रोम के संभावित कारणों की पहचान करने के लिए रोगी के medical history के बारे मे detail जानकारी ली जाती है, जैसे कि recent stroke, head trauma, या internal neurological condition आदि।
Test for locked in syndrome in hindi
Locked in syndrome kya hai in Hindi के बारे में जब हम अच्छी तरह समझ लेते हैं तो हमें इसका सही उपाय करना बहुत जरूरी हो जाता है जिसके लिए डॉक्टर के द्वारा तरह-तरह के टेस्ट किए जाते हैं ताकि यह स्पष्ट रूप से पता चल सके कि दिमाग सक्रिय है। तो चलिए Test for locked in syndrome in hindi के बारे में हम आपको बताते हैं।
- एमआरआई या सीटी स्कैन दिखा सकता है कि क्या आपके पोन्स या आपके मस्तिष्क के अन्य हिस्सों को कोई क्षति हुई है।
- सेरेब्रल एंजियोग्राफी परीक्षण के जरिए ये पता चल सकता है कि आपके मस्तिष्क की धमनियों में या मस्तिष्क में या कही और रक्त का थक्का जमा है या नहीं।
- इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी) परीक्षण से आपके मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि का पता चलता है। यह स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को यह निर्धारित करने में मदद कर सकता है कि क्या आप सामान्य मस्तिष्क गतिविधि और नींद-जागने के चक्र का अनुभव कर रहे हैं, जो LiS को अन्य सभी स्थितियों से अलग करता है।
- विकसित क्षमताएँ का परीक्षण ऐसा टेस्ट हैं जो दर्द, श्रवण या दृश्य आदि जैसी उत्तेजना के जवाब में आपके मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के कुछ क्षेत्रों में विद्युत गतिविधि को मापता हैं। इस टेस्ट के जरिए डॉक्टर ये समझने की कोशिश करता है कि आपका दिमाग का कौन सा हिस्सा सही तरीके से कम कर रहा है या प्रभावित है।
- इलेक्ट्रोमायोग्राफी परीक्षण ये मापता है कि आपकी मांसपेशियां और तंत्रिकाएं कितनी अच्छी तरह से काम करती हैं। डॉक्टर आपकी मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को होने वाले नुकसान का पता लगाने के लिए इस परीक्षण का उपयोग कर सकते हैं।
- ब्लड टेस्ट के माध्यम से रक्त में सोडियम के स्तर की जाँच करके यह निर्धारित करने में मदद मिलती है कि pontine myelinolysis इसका कारण है या नहीं।
- सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (CSF)टेस्ट केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के भीतर संक्रमण, सूजन या रक्तस्राव जैसे न्यूरोलॉजिकल लक्षणों के अन्य संभावित कारणों का पता लगाने में मदद करता है और cerebrospinal fluid में blood की उपस्थिति की पहचान करने में भी मदद करता है, जो central nervous system के भीतर bleeding का संकेत देता है।
How is locked in syndrome treated in hindi
Locked in syndrome kya hai in hindi को अच्छी तरह समझने के बाद इसके प्रबंधन और उपचारों को जानना जरूरी हो जाता है तो चलिए हम आपको बताते हैं How is locked in syndrome treated in hindi
लॉक इन सिंड्रोम का इलाज करने के लिए बीमारी होने के कारण का इलाज करने के अलावा इस बीमारी को रोकने का कोई उपचार नहीं होता है,लॉक-इन सिंड्रोम (pseudocoma) के इलाज में सहायक डॉक्टर और संचार प्रशिक्षण शामिल होता है जिसमें हम सबसे पहले डॉक्टर के बारे में बात करते हैं।
Doctor Treatment
सांस लेने और दूध पिलाने के काम के लिए Doctor Treatment मे बहुत जरूरी है खास तौर पर शुरुआती समय में। लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) बीमारी होने वाले लोगों को अक्सर सांस लेने में समस्या होती है जिस कारण उन्हें आर्टिफिशियल सहायता की जरूरत होती है और उन्हें ट्रेकियोटोमी (गले में एक छोटे से छेद के माध्यम से उनके वायुमार्ग में जाने वाली एक ट्यूब) की मदद से सांस लेने में मदद की जाती है। हालांकि लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) बीमारी होने के साथ अपने मुंह से खाना और पानी पीना सुरक्षित नहीं होता है इसलिए ऐसे पेशेंट के पेट में भोजन और पानी पर्याप्त मात्रा में एक छोटी ट्यूब के द्वारा दे दिया जाता है जिसे गैस्ट्रोस्टॉमी ट्यूब कहा जाता है।
कुछ अन्य उपचार
- इसके अलावा कुछ अन्य उपचार में शामिल कुछ उपचार इस प्रकार हैं जैसे गतिहीनता के कारण होने वाले सभी प्रकार की समस्या जैसे निमोनिया, मूत्र पथ पर संक्रमण होना (यूटीआई) और थ्रोम्बोसिस को रोकना।
- केवल इतना ही नहीं दबाव की वजह से होने वाले चोट (बेडोर्स) को भी रोकना, अंगों का सिंकुडण जैसे जोड़ो मांसपेशियों या कोमल टिशु की सीमाओं के कारण गति की सीमा में कमी होना आदि को रोकने के लिए फिजिकल डॉक्टर प्रदान किया जाता है।
- छोटी स्वैच्छिक गतिविधियों के पुनर्वास के लिए physical डॉक्टर प्रदान करना जिससे जो बची हुई बीमारी हैं या ठीक हो गई हैं, यदि कोई हो तो उसका पता चलता है।
Communication treatment
स्पीच थेरेपिस्ट के द्वारा लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) से बीमार लोगों को आंखों की गतिविधियों के द्वारा और पलक झपकाने आदि जैसे एक्टिविटी करने से संवाद करने में मदद करते हैं या एक प्रकार का बातचीत करने का तरीका होता है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए अद्वितीय होता।
जैसे आपके ऊपर देखने का मतलब हां हो सकता है और नीचे देखने का मतलब नहीं यह इसके विपरीत हो सकता है।LiS वाले लोग वर्णमाला के विभिन्न अक्षरों का प्रयोग करके शब्द और वाक्य आसानी से बना सकते हैं।
जबकि कोई अन्य व्यक्ति मौखिक रूप से प्रत्येक अक्षर को सूचीबद्ध तरीके से नहीं बता सकता है इस तरह के कम्युनिकेशन के लिए कोड के द्वारा आंखों की गतिविधियों के अलावा इलेक्ट्रॉनिक संचार उपकरण जैसे इन्फ्रारेड नेत्र गति सेंसर और कंप्यूटर वॉयस प्रोस्थेटिक्स, लॉक-इन सिंड्रोम वाले लोगों को आराम से बातचीत करने तथा इंटरनेट तक पहुंच में मदद करते हैं।
Locked in syndrome survival rate in Hindi
Locked in syndrome kya hai in hindi के बारे में तो हम जानते हैं कि यह एक प्रकार का न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसमें व्यक्ति की मस्तिष्क की कुछ मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं लेकिन यह जानकारी जानना केवल काफी नहीं होता है इसके साथ-साथ हमें Locked in syndrome survival rate in Hindi के बारे में भी पता होना जरूरी होता है तो आपकी जानकारी के लिए मैं आपको बता दूं लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) नामक बीमारी से पूरी तरह व्यक्ति के ठीक होने की संभावनाएं बहुत कम रहती है।
लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) बीमारी से पीड़ित अधिकतर लोग अपने खोए हुए तांत्रिक कार्य को पुनः प्राप्त नहीं कर पाते हैं लेकिन वह अपनी आंख का उपयोग करके बातचीत करना सीख सकते है।
Can I prevent locked in syndrome in hindi
जैसा कि मैंने आपको बताया कि लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) बीमारी से पूरी तरह से बचाव करना संभव नहीं है लेकिन कुछ उपाय को अपनाकर हम कुछ हद तक इस बीमारी को गंभीर होने से रोक सकते हैं।
1. स्ट्रोक से बचाव करें
लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) से बचाव के लिए हमें स्ट्रोक से बचाव करना चाहिए क्योंकि स्ट्रोक इसका सबसे बड़ा कारण होता है, इससे बचने के लिए आपको निम्न उपाय करना चाहिए।
- आप ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें।
- डायबिटीज़ का समय समय पर इलाज करते रहे।
- अपने कोलेस्ट्रॉल लेवल को संतुलित रखें।
2. स्वस्थ जीवनशैली अपनाएँ
लॉक-इन सिंड्रोम (LiS) से बचने के लिए आपको स्वस्थ जीवन शैली अपनाना चाहिए।
- आप धूमपान और शराब से परहेज करें, जिससे स्ट्रोक और ब्रेन हेमरेज का खतरा बढ़ने से बच सके।
- आपको एक संतुलित आहार में भोजन करना चाहिए जैसे हरी सब्जियां, फल, साबुत, अनाज और कम वसा वाला खाना।
- नियमित रूप से आपको रोजाना 30 मिनट walk या हल्की योग करते रहना चाहिए।
3. सिर की चोट से बचाव
- बाइक या स्कूटर आदि चलाते समय हमेशा हेलमेट पहनना चाहिए जिससे आपके सिर की चोट से बचाव हो।
- खेल खुद या किसी भी जोखिम भरी एक्टिविटी करते वक्त सुरक्षा उपकरण का इस्तेमाल करें।
4. न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का ध्यान रखें
- अगर आपके परिवार में किसी को ALS, Multiple Sclerosis या अन्य नर्व डिसऑर्डर आदि जैसे समस्या है तो नियमित न्यूरोलॉजिकल जांच कराए।
- संक्रमण (मेनिन्जाइटिस, एन्सेफलाइटिस) होने पर उसे हल्के में ना ले तुरंत उसका इलाज कराए।
5. नियमित स्वास्थ्य जांच
- आपको हर 6 से 12 महीने में ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल की जांच करानी चाहिए।
- स्ट्रोक की शुरुआती लक्षणों में अचानक कमजोरी आना, बोली लड़खड़ाना या फिर चेहरा टेढ़ा होना आदि जैसे लक्षण दिखते हैं इसलिए ऐसा होने पर तुरंत इसे पहचान कर डॉक्टर से दिखाएं।
How is life with locked in syndrome
Locked in syndrome kya hai in hindi के बारे में सभी जानकारी के साथ इससे जुड़े अन्य प्रश्नों को जानने के बाद अब सवाल आता है How is life with locked in syndrome यानी इस सिंड्रोम के साथ जीवन शैली कैसी हो जाती है। अगर आसान भाषा में बताया जाए तो इस अवस्था में जीवन बहुत ही चुनौतीपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इस समय व्यक्ति अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकता है जैसे भावना व्यक्त करना, अपने विचारों को बताना आदि जैसी जरूरत पर दूसरों पर निर्भर रहता है।
लॉक-इन सिंड्रोम (pseudocoma) वाले कुछ लोग मेडिकल कॉम्प्लिकेशन के कारण स्थिति के प्रारंभिक चरण से आगे नहीं जीवित रह पाते हैं लेकिन वहीं कुछ अन्य लोग लगभग 10 से 20 साल तक का जीवन गुजार लेते हैं और जीवन की अच्छी गुणवत्ता की सूचना भी देते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
लॉक्ड-इन सिंड्रोम वाले व्यक्ति कैसे बात करते हैं?
संचार के तरीके अलग-अलग होते हैं, लेकिन LIS वाले कई लोग संदेश देने के लिए आंखों की गति या पलक झपकाने का उपयोग करते हैं। आंखों पर नज़र रखने वाले उपकरणों और मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों को भी उपयोग किया जाता है।
क्या लॉक्ड-इन सिंड्रोम को रोका जा सकता है?
स्ट्रोक या दर्दनाक चोटों जैसे अंतर्निहित कारणों को रोकने से लॉक्ड-इन सिंड्रोम का खतरा कम हो जाता है।
क्या लॉक्ड-इन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों और उनके परिवारों के लिए सहायता समूह हैं?
हां, एलआईएस वाले व्यक्तियों और उनकी देखभाल करने वालों के लिए भावनात्मक समर्थन, जानकारी और संसाधन प्रदान करने के लिए सहायता समूह और संगठन मौजूद हैं।
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